बुधवार, 28 अप्रैल 2010

रिश्ते

अकसर जिस धरती के ऊपर
हम पांव टिका कर खडे होते है
उसी को रौन्धते हुए
बढाते है हम अपना
अगला कदम।
या यूं कहें
अकसर जो हमे सहरा देते हैं
उन्हीं की बेकद्री करते हुए
ढूंढते हैं हम अगला सहरा।
अगर मुड़ कर देखें तो
नज़र आएगी धुन्धले पद्चिन्हों
की एक लम्बी कतार।

शुभा सक्सेना

2 टिप्‍पणियां:

  1. आगे तो बढ़ना ही पड़ेगा. अगर खड़े रह गए तो गड्ढा हो जाएगा.

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  2. क्या आगे बढ़ने के लिये रौंधना ज़रूरी है? क्या हल्के क़्दमों से आगे नहीं बढ़ा जा सकता? कट थ्रोट कोम्पेटीशन के ज़माने में गला काटना ज़रूरी है?रिश्तों की कब्र पर खड़े हो कर जीत का परचम पह्रराना मेरी नज़रों में सही नहीं है.

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