गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

रात गुनगुनाती है

गुलाबी ठन्ड
मन्द- मन्द बहता पवन
छेड्ता है जब
रश्मि-तार
तब छाया गाती है।
दूधिया चांदनी
जब थपकाती है
पूर्णिमा का चांद
तब रात गुनगुनाती है।
तुम्हारा स्नेहिल स्पर्श
साथ हो जब
नींद तब आती है।

शुभा सक्सेना

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