माफ़ करना
अगर मैंने
तुम्हारी आंखों से
बहते तुम्हारे सपने को
अपनी आंखों मे जगह दी।
माफ़ करना
अगर मैनें
तुम्हारी बेज़ुबानी को
अपनी आवाज़ दी।
अगर मेरे इस कुकृत्य से
तुम्हारे आत्मसम्मान को ठेस पहुंची हो
तो लो आज मैं लौटाती हूं
हमारे सपने की किरचें
और पिन्जरे में बन्द तुम्हारे शब्द।
शुभा सक्सेना
बुधवार, 21 अप्रैल 2010
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