गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

उदासी

रात की हथेली पर
चांद -
अपना चिबुक
टिकाये बैठा है।
उदास चाँदनी
नदी में डूबने
उतर आयी है।
हवा खामोश
ज़ुबां सीये बैठी है.
पत्ते डाँट खाये
बच्चे से गुमसुम हैं
कहीं कोई हरकत या हलचल नहीं है
बस -यूँ ही
ये आँसू
आदतन बह रहे हैं.

-शुभा सक्सेना

5 टिप्‍पणियां:

  1. जिन्दगी क्या बताऊँ मैं एक गूँगे का ख्वाब हो जैसे,
    या किसी सूद्खोर बनिये का उलझा-उलझा हिसाब हो जैसे ।
    प्रकाश टाटा आनन्द

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  2. Shubha ji aadatan aansoon beh rahe hai to kisi charagar ko dhoondho bhai. vaise aansoo aankh ka dhundhlapan dho dete hain. bahut kuchh saaf deekhne lagta hai.

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  3. अति उत्तम
    दिल को छु लेने वाली कविता

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  4. आँसू कब तक बहाएंगी. हँसी के फव्वारे छोड़िए. छोड़िए भी अब चुपचाप रोना, खुल के ठहाके लगाइए ऐसा पुतुल बनाइए.

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